सीमा पर फिर खून! पाकिस्तान–अफगानिस्तान बॉर्डर पर भीषण झड़प में कई की मौत

सीमा पर फिर खून! पाकिस्तान–अफगानिस्तान झड़प में बढ़ा तनाव
सीमा पर फिर खून! पाकिस्तान–अफगानिस्तान बॉर्डर पर भीषण झड़प में कई की मौत

सीमा पर फिर खून! पाकिस्तान–अफगानिस्तान बॉर्डर पर भीषण झड़प में कई की मौत

छवि स्रोत: प्रतीकात्मक (रॉयल्टी-फ्री इमेज)

पाकिस्तान और अफगानिस्तान की सीमा पर एक बार फिर हिंसा भड़क उठी है। रविवार रात से सोमवार सुबह तक दोनों देशों की सीमा चौकियों पर भारी गोलीबारी और मोर्टार हमलों की खबरें सामने आईं। सूत्रों के अनुसार, दोनों पक्षों के दर्जनों जवान मारे गए या घायल हुए हैं। हालांकि, अब तक आधिकारिक आंकड़े पूरी तरह स्पष्ट नहीं हैं। यह झड़पें ऐसे समय में हुई हैं जब क्षेत्र में पहले से ही राजनीतिक अस्थिरता और आर्थिक संकट गहराया हुआ है।

इस संघर्ष के बाद सीमा को अस्थायी रूप से बंद कर दिया गया है और आवागमन पूरी तरह रोक दिया गया है। स्थानीय नागरिकों को घरों में रहने की अपील की गई है। अफगान और पाकिस्तानी प्रशासन दोनों ने एक-दूसरे पर सीमा उल्लंघन और उकसावे के आरोप लगाए हैं। कई हज़ार लोगों को प्रभावित करने वाली यह झड़प ड्यूरंड लाइन (Durand Line) विवाद की पुरानी पृष्ठभूमि को फिर से जिंदा कर रही है।

संघर्ष की शुरुआत कैसे हुई?

सूत्रों का कहना है कि यह झड़प शनिवार देर रात उस समय शुरू हुई जब अफगान सीमा बलों ने पाकिस्तानी पोस्ट पर गोलीबारी की। पाकिस्तान का दावा है कि यह हमला पहले हुआ और उनकी जवाबी कार्रवाई आत्मरक्षा में थी। वहीं, अफगानिस्तान की ओर से बयान आया कि पाकिस्तान ने सीमा पार तोपखाने से गोलाबारी शुरू की थी, जिसमें उनके सैनिक और आम नागरिक घायल हुए।

यह विवाद टॉर्खम (Torkham) और खरलाची (Kharlachi) सेक्टरों में केंद्रित बताया जा रहा है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, संघर्ष इतना तीव्र था कि पास के गांवों में रहने वाले लोगों को रातोंरात अपने घर छोड़ने पड़े। रिपोर्ट्स में यह भी कहा गया है कि कई स्कूल और बाजार फिलहाल बंद कर दिए गए हैं।

दोनों देशों के दावे अलग-अलग

दोनों पक्षों के बयानों में भारी अंतर है। अफगान सरकार के प्रवक्ता ने दावा किया कि पाकिस्तानी हमले में उनके 9 सैनिक मारे गए, जबकि उन्होंने 58 पाकिस्तानी जवानों को मार गिराने का दावा किया है। वहीं, पाकिस्तान का कहना है कि उनकी ओर से केवल 23 जवान शहीद हुए हैं और उन्होंने 200 “आतंकी तत्वों” को ढेर किया है। यह बयानबाज़ी संघर्ष की सच्चाई को और धुंधला बना रही है।

“अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच यह सीमा विवाद नया नहीं है, लेकिन इस बार स्थिति ज्यादा गंभीर इसलिए है क्योंकि दोनों पक्षों ने सार्वजनिक रूप से सैन्य कार्रवाई स्वीकार की है।”
— क्षेत्रीय सुरक्षा विश्लेषक, नई दिल्ली

सीमा बंद, व्यापार ठप

इस संघर्ष के तुरंत बाद पाकिस्तान ने अपनी प्रमुख सीमा चौकियाँ — टॉर्खम, चामन, और अंगूर अड्डा — अस्थायी रूप से बंद कर दी हैं। अफगानिस्तान से आने-जाने वाला व्यापार और लोगों का आवागमन पूरी तरह ठप है। दोनो देशों के बीच हर दिन लगभग 400 ट्रक गुजरते हैं जो खाद्य सामग्री, ईंधन और दवाइयाँ लेकर आते-जाते हैं। इनके रुकने से न केवल व्यापार बल्कि आम जनजीवन पर भी असर पड़ा है।

सीमा क्षेत्रों में रहने वाले लोगों को अफरा-तफरी का माहौल झेलना पड़ा है। कई गांवों के परिवारों ने सुरक्षित इलाकों की ओर पलायन शुरू कर दिया है। स्थानीय प्रशासन ने राहत केंद्र बनाए हैं, लेकिन रिपोर्ट्स के अनुसार सीमित संसाधनों के कारण सहायता बहुत सीमित है।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि: ड्यूरंड लाइन से शुरू हुई दूरी

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच सीमा विवाद का इतिहास 1893 से शुरू होता है, जब ब्रिटिश साम्राज्य ने ड्यूरंड लाइन समझौते के तहत दोनों क्षेत्रों के बीच एक रेखा खींची थी। यह रेखा कबायली इलाकों से होकर गुजरती है, जो आज भी दोनों देशों के लोगों के बीच सांस्कृतिक, भाषाई और पारिवारिक संबंधों को विभाजित करती है। अफगानिस्तान इस सीमा को कभी औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं करता, जबकि पाकिस्तान इसे अंतरराष्ट्रीय सीमा मानता है।

इस विभाजन के कारण कई बार दोनों देशों के सैनिकों में टकराव हुआ है। अफगानिस्तान का दावा है कि पाकिस्तान ने सीमा के इस पार पश्तून क्षेत्रों को जबरन कब्ज़े में लिया, जबकि पाकिस्तान कहता है कि यह ब्रिटिश समझौते के अनुसार उसका हिस्सा है। यह मतभेद ही वर्तमान संघर्षों की जड़ में है।

तालिबान शासन के बाद की चुनौतियाँ

2021 में अमेरिका की वापसी के बाद जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर पुनः नियंत्रण स्थापित किया, तो पाकिस्तान को उम्मीद थी कि काबुल में उसकी “दोस्त सरकार” बनेगी। लेकिन इसके विपरीत, तालिबान सरकार ने पाकिस्तान की नीतियों से दूरी बना ली और टीटीपी (Tehrik-e-Taliban Pakistan) जैसे समूहों को लेकर टकराव बढ़ गया। पाकिस्तान पर आरोप है कि वह अब अपनी सीमा पार आतंकी ठिकानों पर हवाई हमले कर रहा है, जिससे अफगान संप्रभुता का उल्लंघन हो रहा है।

तालिबान सरकार ने सार्वजनिक रूप से कहा है कि पाकिस्तान का यह रवैया क्षेत्रीय शांति के लिए खतरा है। वहीं, पाकिस्तान कहता है कि अफगानिस्तान की भूमि का इस्तेमाल पाकिस्तानी नागरिकों पर हमले करने के लिए हो रहा है। इस आरोप-प्रत्यारोप के बीच दोनों देशों की सीमाएँ युद्धक्षेत्र बनती जा रही हैं।

भारत का दृष्टिकोण: सतर्क लेकिन सजग

भारत इस संघर्ष को बेहद करीब से देख रहा है। नई दिल्ली की नीति फिलहाल संतुलित और संयमित है — भारत ने न तो किसी पक्ष का खुलकर समर्थन किया है और न ही किसी पर आरोप लगाया है। फिर भी, यह स्थिति भारत की सुरक्षा रणनीति और कूटनीतिक संतुलन पर सीधा प्रभाव डालती है।

विशेषज्ञों का मानना है कि यह संघर्ष भारत के लिए तीन स्तरों पर महत्वपूर्ण है:

  • 1. सुरक्षा दृष्टि से: अफगान-पाक तनाव से दक्षिण एशिया की स्थिरता प्रभावित होती है। भारत को चिंता है कि अगर यह झड़प बढ़ी तो आतंकवादी संगठन भारत विरोधी गतिविधियों को और बढ़ा सकते हैं।
  • 2. कूटनीतिक दृष्टि से: भारत अफगानिस्तान के पुनर्निर्माण में लगातार मदद कर रहा है। ऐसी स्थिति में यदि क्षेत्र अस्थिर होता है, तो भारत की रणनीतिक निवेश योजनाएँ बाधित हो सकती हैं।
  • 3. आर्थिक दृष्टि से: भारत-मध्य एशिया व्यापार मार्ग पाकिस्तान-अफगानिस्तान होकर जाता है। संघर्ष के कारण यह रूट असुरक्षित हो सकता है, जिससे भारत की ऊर्जा और व्यापारिक योजनाएँ प्रभावित होंगी।
“भारत इस समय न तो खुलकर किसी पक्ष में जा सकता है, न ही आंख मूंद सकता है। दोनों स्थितियाँ उसके सामरिक हितों के खिलाफ हैं।”
— प्रो. आनंद मिश्रा, अंतरराष्ट्रीय संबंध विशेषज्ञ, जेएनयू

भारत की कूटनीतिक स्थिति

भारत ने आधिकारिक तौर पर इस झड़प पर अब तक कोई सीधा बयान नहीं दिया है, लेकिन विदेश मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार, भारत चाहता है कि दोनों पक्ष बातचीत के माध्यम से विवाद सुलझाएँ। भारत संयुक्त राष्ट्र और SCO (शंघाई सहयोग संगठन) जैसे मंचों के जरिए शांति की अपील कर सकता है।

भारत पहले भी अफगानिस्तान में स्थिरता बनाए रखने के पक्ष में रहा है। 2022 में जब तालिबान के शासन में पहली बार सीमा झड़प हुई थी, भारत ने मानवीय सहायता भेजकर संकेत दिया था कि वह अफगान जनता के साथ खड़ा है, ना कि किसी शासन के साथ। इस बार भी विशेषज्ञों को उम्मीद है कि भारत तटस्थ लेकिन सॉफ्ट-ह्यूमेनिटेरियन भूमिका निभाएगा।

क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय असर

पाक-अफगान झड़प का असर सिर्फ इन दो देशों तक सीमित नहीं रहेगा। यह संघर्ष मध्य एशिया से लेकर खाड़ी देशों तक सुरक्षा समीकरणों को प्रभावित कर सकता है। चीन, रूस, ईरान और तुर्की जैसे देशों के हित इस क्षेत्र से जुड़े हैं। भारत को भी इन देशों के साथ अपने संबंधों को सावधानी से संतुलित करना होगा।

विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह संघर्ष बढ़ता है, तो भारत को न केवल कूटनीतिक रूप से बल्कि सुरक्षा परिषद जैसे वैश्विक मंचों पर भी अपनी भूमिका मजबूत करनी होगी। यह भारत के लिए एक अवसर भी हो सकता है कि वह responsible regional power के रूप में अपनी स्थिति को और सशक्त करे।

मानवीय संकट: सीमा के दोनों ओर बेकसूर लोग

हर बार की तरह, इस बार भी सबसे अधिक नुकसान उन लोगों को हुआ जो किसी भी संघर्ष में सबसे कमजोर होते हैं — आम नागरिक। सीमा के आस-पास बसे गांवों के लोग इस गोलीबारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित हुए हैं। रात भर चली तोपों की गड़गड़ाहट के बीच लोग अपने बच्चों को लेकर खेतों और पहाड़ियों की ओर भागे। कई परिवारों के घर जले, मवेशी मारे गए और सैकड़ों लोगों को अस्थायी राहत शिविरों में शरण लेनी पड़ी। स्थानीय प्रशासन का कहना है कि अब तक लगभग 2,000 से अधिक परिवार विस्थापित हो चुके हैं। सीमा बंद होने के कारण खाद्य सामग्री की आपूर्ति भी ठप पड़ी है। कई राहत संगठन सीमित संसाधनों में लोगों को खाना, पानी और दवाइयाँ पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन जमीनी हालात बेहद कठिन हैं।

बच्चे और महिलाएँ सबसे अधिक प्रभावित

अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों में सीमा इलाकों में शिक्षा और स्वास्थ्य पहले से ही कमजोर हैं। इस संघर्ष ने स्थिति और खराब कर दी है। स्कूलों को बंद कर दिया गया है और महिलाओं के लिए सुरक्षित आश्रय सीमित हैं। मानवाधिकार संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि हिंसा नहीं रुकी, तो आने वाले हफ्तों में मानवीय संकट गहरा सकता है।
“सीमा पर गोलीबारी केवल सैनिकों के बीच नहीं होती — यह एक पूरे समाज को झकझोर देती है। आने वाली पीढ़ियों के मन में डर और अविश्वास की दीवारें खड़ी करती है।” — सीमा शांति विशेषज्ञ, यूनिवर्सिटी ऑफ दिल्ली

मीडिया और सूचना युद्ध

संघर्ष के इस दौर में एक और युद्ध चल रहा है — सूचना का युद्ध। दोनों देशों के मीडिया अपने-अपने पक्ष को सही ठहराने की कोशिश कर रहे हैं। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भ्रामक खबरें, पुराने वीडियो और मैनिपुलेटेड तस्वीरें तेजी से फैल रही हैं। यह स्थिति तनाव को और बढ़ा रही है। भारत के मीडिया विश्लेषकों का कहना है कि अफगानिस्तान और पाकिस्तान दोनों देशों में पत्रकारों पर प्रतिबंध और सेंसरशिप के कारण वास्तविक स्थिति तक पहुंच पाना मुश्किल है। भारत में कई चैनलों ने इस संघर्ष को “क्षेत्रीय अस्थिरता” के रूप में कवर किया है, जिसका असर भारत की सुरक्षा और आर्थिक नीतियों पर सीधा पड़ सकता है।

भारत की मानवीय भूमिका: एक संभावित शांति सूत्र

भारत ने हमेशा अफगान जनता की भलाई के लिए काम किया है। 2001 के बाद भारत ने अफगानिस्तान में डेलराम-ज़रांज हाईवे, सलमा बांध (India–Afghanistan Friendship Dam) और कई अस्पतालों और स्कूलों का निर्माण कराया। आज भी भारत वहाँ की जनता को खाद्य और स्वास्थ्य सहायता भेजता है। विशेषज्ञों का मानना है कि भारत इस मौजूदा संकट में “ह्यूमेनिटेरियन डिप्लोमेसी” का उपयोग कर सकता है। इसका मतलब है — बिना किसी पक्षपात के, मानवता के आधार पर सहायता पहुँचाना और संवाद को प्रोत्साहित करना। भारत संयुक्त राष्ट्र या SAARC के माध्यम से एक बहुपक्षीय शांति पहल शुरू कर सकता है।

संघर्ष का भविष्य: क्या शांति संभव है?

यह सवाल सबसे बड़ा है — क्या पाकिस्तान और अफगानिस्तान अब संवाद की मेज़ पर लौटेंगे? कई बार पहले भी दोनों देशों के बीच बातचीत की पहल हुई, लेकिन अविश्वास और राजनीतिक दबावों के कारण कोई ठोस नतीजा नहीं निकल सका। अब जब दोनों देशों के सैनिक हताहत हुए हैं और जनता पीड़ित है, तो शांति की आवश्यकता पहले से कहीं ज़्यादा है। अफगानिस्तान के विदेश मंत्रालय ने बयान जारी किया है कि वे क्षेत्रीय शक्तियों की मध्यस्थता के लिए तैयार हैं, जबकि पाकिस्तान की ओर से भी “संयम और संवाद” की भाषा अपनाई जा रही है। अगर यह रुख वास्तविक साबित होता है, तो आने वाले हफ्तों में कुछ सकारात्मक कदम उठ सकते हैं।

भारत के लिए सबक और रणनीतिक संकेत

भारत के लिए यह संघर्ष कई स्तरों पर शिक्षाप्रद है। एक तरफ यह दिखाता है कि दक्षिण एशिया में अभी भी सीमाएँ स्थिर नहीं हैं, दूसरी ओर यह चेतावनी देता है कि धर्म, जातीयता या भू-राजनीति के नाम पर हिंसा कितनी जल्दी भड़क सकती है। भारत को अपनी पश्चिमी सीमाओं पर सतर्क रहना होगा। अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बढ़ती अशांति भारत के लिए नई सुरक्षा चुनौतियाँ पैदा कर सकती है — खासकर जम्मू-कश्मीर और पंजाब क्षेत्रों में। साथ ही, भारत को स्मार्ट डिप्लोमेसी अपनानी होगी: एक ओर अफगानिस्तान के लोगों का साथ देना, और दूसरी ओर पाकिस्तान के साथ सीमित लेकिन संवेदनशील संवाद बनाए रखना।

कूटनीति के नए रास्ते

भारत “शांति मध्यस्थ” की भूमिका निभा सकता है, जैसा उसने श्रीलंका, नेपाल और मालदीव के मामलों में किया है। इस बार भी भारत अगर एक जिम्मेदार शक्ति के रूप में बातचीत का रास्ता तैयार करे, तो यह न केवल अफगान-पाक सीमा पर शांति ला सकता है, बल्कि दक्षिण एशिया को स्थिरता की नई दिशा दे सकता है।

निष्कर्ष: सीमा के पार शांति की उम्मीद

पाकिस्तान–अफगानिस्तान सीमा पर हुई यह भीषण झड़प दक्षिण एशिया के लिए एक चेतावनी है कि सीमाओं के विवाद केवल रेखाएँ नहीं, बल्कि लोगों की ज़िंदगियों से जुड़े मुद्दे हैं। जब तक दोनों देश पारदर्शी संवाद और भरोसे की नीति नहीं अपनाएँगे, यह क्षेत्र बार-बार हिंसा की आग में झुलसता रहेगा। भारत के लिए यह समय शांतिदूत की भूमिका निभाने का है। अगर नई दिल्ली कूटनीति, सहायता और संवाद के तीनों रास्तों पर एक साथ आगे बढ़ती है, तो यह न केवल क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक स्तर पर भारत की छवि को भी और मजबूत करेगा।
विशेष रिपोर्ट — पाकिस्तान–अफगानिस्तान सीमा संघर्ष पर भारत केंद्रित विश्लेषण
 

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